पुणे न्यूज डेस्क: नगर निगम पर मोबाइल टावर लगाने वाली कंपनियों का 3500 करोड़ रुपये का संपत्ति कर बकाया है, लेकिन राज्य सरकार ने अगस्त में आदेश दिया कि यह राशि जबरन वसूल न की जाए। इस फैसले के बाद नगर निगम के लिए यह चुनौती खड़ी हो गई है कि वह इस बकाया को कैसे वसूले। निगम प्रशासन अब राज्य के मुख्य सचिव से मिलकर इस समस्या का हल निकालने की योजना बना रहा है। नगर निगम के विस्तार और विकास कार्यों के लिए बड़ी धनराशि की आवश्यकता होती है, लेकिन मोबाइल कंपनियां आयकर अदा न करने से निगम की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ रहा है।
इस मुद्दे को लेकर नगर निगम और मोबाइल कंपनियों के बीच पिछले कई वर्षों से विवाद चल रहा है। यहां तक कि यह मामला अदालत में भी लंबित है। अगस्त में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने जबरन वसूली पर रोक लगा दी थी, जिससे नगर निगम के लिए चुनौती और बढ़ गई। चालू वित्तीय वर्ष (2024-25) में नगर निगम के आयकर विभाग को 2,700 करोड़ रुपये वसूलने का लक्ष्य दिया गया था, जिसमें से अब तक 1,700 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली हो चुकी है। शेष लक्ष्य पूरा करने के लिए निगम ने संपत्तियों की नीलामी की योजना बनाई है।
मोबाइल कंपनियों का आयकर कई वर्षों से बकाया है, जो अब 3,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। नगर निगम के उपायुक्त माधव जगताप ने बताया कि यह मामला राज्य के मुख्य सचिव के सामने रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि मोबाइल कंपनियों से बकाया वसूलने के लिए राज्य सरकार से आवश्यक निर्देश मांगना अनिवार्य हो गया है। निगम की आय का यह एक महत्वपूर्ण स्रोत है, और इस बकाया को वसूल किए बिना विकास कार्यों के लिए धन जुटाना मुश्किल हो सकता है।
नगर निगम के आयुक्त डॉ. राजेंद्र भोसले और अन्य अधिकारियों ने इस विषय पर चर्चा की है। निगम के मुताबिक शहर के विकास कार्यों के लिए अधिक निधि की आवश्यकता है, और इसे हासिल करने के लिए मोबाइल कंपनियों से बकाया वसूली करना जरूरी है। माधव जगताप ने कहा कि इस संबंध में राज्य के प्रधान सचिव से मिलकर निर्देश प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा ताकि नगर निगम की आय बढ़ाई जा सके।